महाराणा प्रताप के शौर्य की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। महाराणा प्रताप के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। महाराणा प्रताप जैसा योद्धा ना तो इतिहास में कभी पैदा हुआ था और नाही कोई होगा। आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है। शत शत नमन है इतिहास के सबसे बड़े वीर योद्धा को।
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अपनी शौर्य गाथाओं की छाप छोड़ने वाली इस भारत भूमि ने कई योद्धाओं को जन्मा जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। महाराणा प्रताप भी उन्हीं वीर सपूतों में से हैं जिनके शौर्य की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है।आज उसी महान योद्धा की पुण्यतिथि है। आइए आपको बताते हैं उनके बारे में कुछ रोचक बातें।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह और माता का नाम जयवंत कंवर था। महाराणा प्रताप को बचपन में ‘कीका’ के नाम से पुकारा जाता था। राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदय सिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है।
उस दौर में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की, जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया।
महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुंह से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे. अकबर ने उन्हें समझाने के लिए 4 बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था, लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था.
इतिहासकारों के मुताबिक महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ काफी ताकतवर थे। उनका कद करीब 7 फुट 5 इंच था और वे अपने साथ 80 किलो का भाला और दो तलवारें रखते थे. महाराणा प्रताप जिस आर्मर (कवच) को धारण करते थे उसका वजन भी 72 किलो था। उनके अस्त्रों और शस्त्रों का कुल वजन करीब 208 किलो हुआ करता था। महारणा प्रताप के घोड़े की भी एक अलग ही बात थी।
जब हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों से भिड़े महाराणा
महाराणा प्रताप के जीवन को सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि आज की पीढ़ी उनके जीवन से वीरता और शौर्य सीख सके. महाराणा की वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण 8 जून 1576 में हुए हल्दी घाटी के युद्ध (Battle of Haldighati) में देखने को मिला जहां महाराणा प्रताप की लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों मिला के १५००० की सेना थी. सेना का सामना आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5,0000-10,0000 लोगों की सेना से हुआ था. 3 घंटे से ज्यादा चले इस युद्ध (Battle of Haldighati) में महाराणा प्रताप जख्मी हो गए थे। कुछ साथियों के साथ वे पहाड़ियों में जाकर छिप गए जिससे वे अपने सेना को जमा कर फिर से हमला करने के लिए तैयार कर सकें. लेकन तब तक मेवाड़ (Mewar) के हताहतों की संख्या लगभग 1,600 हो गई थी जबकि अकबर (Akbar) की मुगल सेना ने 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500-7800 सैनिक गंवा दिए थे।